रविवार, 6 मार्च 2011

विकलांगता के बावजूद बन गई जलपरी

"डेढ़ दशक पूर्व अधिकतर महिलाएं सिर्फ चूल्हे, चौके और घर तक ही सीमित रहीं। लेकिन बदलते दौर में महिलाओं ने कई मामलों में पुरूषों को पछाड़ते हुए नई उचाईयां हासिल की हैं। महिला सशक्तिकरण के इस दौर में शासकीय सेवाओं, निजी क्षेत्रों, खेल, मीडिया, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है।"
ऐसी ही एक महिला खिलाड़ी अंजनी पटेल ने तमाम असुविधाओं और आर्थिक अभाव के बावजूद कामनवेल्थ गेम्स में पैरालम्पिक में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर लोगों को चौंका दिया था। साथ ही प्रदेश के गौरव को भी बढ़ाया है। पोलियो जैसी घातक बीमारी से एक पैर गवां चुकी अंजनी तमाम मुसीबतों का सामना करते हुए तैराकी के खेल में नए मुकाम हासिल करती जा रही है।

जांजगीर-चांपा जिले की इस जलपरी का परिवार बलौदा नगर में गांधी चौक के पास एक गली में छोटे से खपरैल युक्त मकान में रहता है। पिता शत्रुधन पटेल बस के ड्राईवर हैं, अपनी मां, पांच बहनों और एक भाई के परिवार के साथ अंजनी को तैराक बनने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है। अंजनी पटेल बताती है कि विकलांग होने के कारण शुरूआत में कई लोग उसकी तैराकी को देखकर खिल्ली उड़ाते थे, लेकिन उसके हौसले पस्त नहीं हुए। अपनी आलोचना को उसने चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए एक एक कर चालीस से अधिक प्रतियोगिताओं में
जीत हासिल की। उसके बाद ही लोगों को उसकी प्रतिभा का अंदाजा हुआ। प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर तैराकी प्रतियोगिता में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करने के बाद भी उसने अपना प्रयास निरंतर जारी रखा। नतीजतन वर्ष 2010 में आयोजित कामनवेल्थ गेम में अंजनी को छत्तीसगढ़ की ओर से तैराकी प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।

वे बताती है कि कामनवेल्थ में खेलना उसे सपने जैसा लगा। उसने कभी सोचा नहीं था कि उनको कामनवेल्थ जैसी बड़ी स्पर्धा में खेलने का मौका मिलेगा। मगर इस बात का भी मलाल है कि अगर पर्याप्त सुविधाएं मिलती तो वे जरूर वहां से पदक लेकर लौटतीं। अंजनी ने बताया कि वह कामनवेल्थ की तैराकी के 50 मीटर के साथ 100 मीटर की फ्रीस्टाइनल में खेलीं। यहां उनको दोनों वर्गों में आठवां स्थान मिला। अंजनी बताती हैं कि छत्तीसगढ़ में महिला खिलाडियों की भरमार है, जिनको अगर राज्य सरकार से सुविधाएं मिले तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य का नाम रौशन कर सकती हैं। अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भीं महिलाएं इस समय बहुत सक्रिय हैं।

आज महिलाएं न सिर्फ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं, बल्कि समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रही हैं। बावजूद इसके हर जगह महिलाओं के साथ भेदभाव जारी है। पढ़ाई लिखाई में बचपन से ही लड़कियों को हाशिए पर खड़ा कर दिया जाता है।

कहने तो आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, लेकिन कामकाज की जगहों पर महिलाओं से भेदभाव किसी से छिपा नहीं है। कई काम तो ऐसे हैं, जिनके लिए उन्हें फिट ही नहीं समझा जाता। पारंपरिक रूप से लड़कों को लड़कियों से ज्यादा अहमियत तो दी ही जाती है, इसीलिए कन्या भूण हत्या जैसी बुराइयां भारतीय समाज में मौजूद हैं, जिसे दूर करने के लिए महिलाओं को ही आगे आना होगा, तभी समाज में महिलाओं की स्थिति मजबूत होगी।

1 टिप्पणी:

पंकज कुमार झा. ने कहा…

बहुत खूब...प्रेरक.
पंकज झा.