शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

मीडियाकर्मियों ने पूछा-सर 'टेंडर कब निकला, तो मत्स्य अफसर बोले तुम्हे 60 का पहाड़ा याद है क्या?

महानदी में निर्माणाधीन पांच बैराजों में डाली गई 51 लाख की मछली बीज को लेकर मत्स्य विभाग के जांजगीर-चांपा के सहायक संचालक गोलमोल जवाब देकर बचने की कोशिश कर रहे हैं। मत्स्य विभाग के दफ्तर पहुंचे मीडियाकर्मियों ने जब उनसे पूछा कि सर, बैराजों में मछली बीज डालने के लिए टेंडर कब निकला था और बैराजों में कितने की बीज डाली गई है, इस सवाल का सीधे जवाब देने के बजाय सहायक संचालक असलम खान बेतुका बात करने लगे। उन्होंने मीडियाकर्मियों से ही सवाल दागा कि तुम्हे 60 का पहाड़ा याद है क्या? यदि याद है तो सुनाओ। वे बोले, जिस तरह तुम्हे 60 का पहाड़ा याद नहीं, ठीक उसी तरह मुझे भी बैराजों में मछली बीज डालने के लिए टेण्डर कब निकला, यह याद नहीं है। कोई भी मामला मुंह जुबानी याद नहीं रहता। इसके लिए फाइल देखनी पड़ती है, जिसके लिए मेरे पास अभी समय नहीं है। जब फुर्सत मिलेगी, तब मैं जानकारी दूंगा। दरअसल, महानदी पर निर्मित शिवरीनारायण, बसंतपुर, कलमा, साराडीह और मिरौनी बैराज में मछली बीज डालने के लिए राज्य शासन ने बीते फरवरी-मार्च में 51 लाख रुपए आवंटित किया था। इतनी राशि से संबंधित बैराजों में मछली बीज डलवाना था। शासन के निर्देशानुसार, ये काम बकायदा टेण्डर जारी कर पूरी पारदर्शिता के साथ कराया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सहायक संचालक मत्स्य असलम खान ने अपने हिसाब से प्रक्रिया पूरी कर ली और अलग-अलग वाहनों में मछली बीज मंगवाकर भौतिक सत्यापन कराए बगैर सीधे बैराजों में डलवा दिया। इसके कुछ दिन बाद ही बीज प्रदातों को भुगतान भी कर दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि मछली बीज किन-किन बैराजों में कितनी मात्रा में डाला गया है और इसके लिए टेण्डर कब निकाला गया था, इस संबंध में विभाग के जिम्मेदार अधिकारी यानी सहायक संचालक खान गोलमोल जवाब दे रहे हैं। यहां बताना लाजिमी होगा कि मछली बीज डालने के नाम पर इस तरह की गड़बड़ी का मामला जिले में पहले भी कई बार सामने आ चुका है, लेकिन इस विभाग की गतिविधि पर शासन-प्रशासन ने विशेष ध्यान नहीं दिया है। यही वजह है कि मत्स्य विभाग के अफसर शासन की विभिन्न योजनाओं में पलीता लगाने कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अफसर बोल रहे तारीख याद नहीं पड़ताल में जो जानकारी छनकर सामने आई है, उसके मुताबिक, मत्स्य विभाग ने कही कोई टेण्डर नहीं निकाला है। जबकि, मत्स्य विभाग के सहायक संचालक असलम खान का दावा है कि टेण्डर राज्य स्तर से निकाला गया है, लेकिन कब निकाला गया है और किन-किन बैराजों में मछली बीज डाला गया है, यह उन्हें याद नहीं है। इसके लिए उन्हें फाइल देखनी पड़ेगी। ऐसे में यहां सवाल उठना लाजिमी है कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी की जानकारी के बिना आखिरकार बीज प्रदाताओं को बीज का भुगतान कैसे हो सकता है। इसलिए डालते हैं बैराजों में बीज जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिस पानी में मछली नहीं होता, उस पानी की जैविक स्थिति सामान्य नहीं रहती है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को जीवन सूचक (बायोइंडीकेटर) माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। जल प्रदूषण को संतुलित रखने के लिए मछली की विशेष उपयोगिता है।

रविवार, 26 मई 2013

सरकार के लिए नक्सलवाद बड़ी चुनौती

छत्तीसगढ़ समेत भारत के सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में जनजीवन सुरक्षित होने का पुलिस भले ही दावा करे, लेकिन लगातार बढ़ रही नक्सली वारदातों से किसी के जनजीवन को सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल, पूर्व मंत्री और सलवा जुडूम के प्रणेता महेंद्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार और दिनेश पटेल सहित डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोगों की निर्मम हत्या और विद्या चरण शुक्ल समेत कई नेताओं पर हुए नक्सली हमले ने पुलिस और राज्य की भाजपा सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है।
छत्तीसगढ़ के बस्तर, जगदलपुर, सुकमा, नारायणपुर, बलरामपुर, सूरजपुर, राजनांदगाँव, जशपुर आदि जिलों में सुरक्षा की जो स्थिति है, उस पर गंभीर प्रश्नवाचकचिन्ह नजर आता है। ऐसे में अब गलतियों को सुधारने पर ध्यान देना केन्द्र व राज्य सरकार की अहम जिम्मेदारी बनती है। साथ ही नक्सल प्रभावित राज्यों में सत्तासीन सरकार को कोशिश करना चाहिए कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना फिर न हो। जहां ऐसी घटनाएं हो सकती हैं, जहां प्रशासन अतिसंवेदनशील है, वहां सुरक्षा का स्तर ऊंचा होना चाहिए। नक्सलियों व आतंकियों का एक लक्ष्य होता है और वे अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए ऐसी वारदात करते हैं, ताकि अपनी मांग मनवाने के लिए सौदा कर सकें। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सली हिंसा को राष्ट्र के सामने बड़ी चुनौती माना है। प्रधानमंत्री सिंह का कहना है कि यह एक राष्ट्रीय समस्या है, इसका जो समाधान है, वह राष्ट्रीय स्तर पर भी है और प्रादेशिक स्तर पर भी। जब तक राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच पूरी समझ के साथ काम नहीं होगा, तब तक नीति बनाने और उसे लागू करने में समस्याएं आएंगी। यह बहुत दुर्भाग्य की स्थिति है कि नक्सल हिंसा को अभी भी राज्य की कानून-व्यवस्था की समस्या माना जा रहा है। हमारे संविधान के अंदर राष्ट्रीय सुरक्षा नाम का कोई वर्णन नहीं है। हम अभी भी यह समझ रहे हैं कि आंतरिक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के बीच कोई फर्क नहीं है। नक्सलवाद कानून व्यवस्था का विषय नहीं है, आंतरिक सुरक्षा का विषय है। भारत के कई राज्यों और नेपाल में नक्सलवाद फैला है, जबकि भारत के ही आंध्रप्रदेश में कड़े कदम उठाए गए, तो नक्सलवादी वहां से खिसककर उड़ीसा, झारखंड में घुस गए हैं। नक्सलवादियों को बारूद, हथियार, पैसा कहां से आ रहा है? इस पर विचार करें, तो यह अंतरराष्ट्रीय समस्या हो जाती है। नक्सल समस्या को खत्म करने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार को आंतरिक सुरक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योकि आज नक्सलवाद बड़ी चुनौती है, इस चुनौती से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को पूरी ताकत लगाना होगा।

बुधवार, 21 सितंबर 2011

फसल मुआवजा अब तक तय नहीं !

0 बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में प्रशासन करा रहा सर्वे
0 पटवारी रिपोर्ट मिलने के बाद होगा अंतिम निर्णय


महानदी में आई बाढ़ से शिवरीनारायण व चंद्रपुर क्षेत्र में क्षतिग्रस्त हुए मकानों का मुआवजा वितरण प्रभावित परिवारों को जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा है, लेकिन फसल का मुआवजा अब तक तय नहीं हो सका है। इसके लिए प्रशासन द्वारा पटवारियों से सर्वे कराया जा रहा है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही फसल का मुआवजा तय होने की बात कही जा रही है।
उल्लेखनीय है कि महानदी में अचानक बाढ़ आने से जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण व चंद्रपुर क्षेत्र के करीब 30 गांव प्रभावित हुए थे। इन गांवों में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी, जिसकी वजह से ग्रामीणों के मकान ढह गए और उन्हें खुले आसमान के नीचे कई रातें गुजारनी पड़ी। जबकि सैकड़ों ग्रामीणों को मजबूरन राहत शिविर में रहकर गुजारा करना पड़ा। बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों के प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को क्षतिग्रस्त मकानों का मुआवजा भुगतान शुरु कर दिया गया है। जिला प्रशासन के अनुसार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र शिवरीनारायण, नगारीडीह, केरा, देवरी, मोहतरा में अब तक 448 प्रकरणों में 12 लाख 23 हजार एक सौ रुपए स्वीकृत हो गई है तथा वितरण का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है, जबकि सर्वे का कार्य जारी है। इसी तरह डभरा तहसील अंतर्गत 20 गांव प्रभावित है, जिसमे पूर्ण क्षति के 639 एवं आंशिक क्षति के 3357 प्रकरण तैयार किए गए हैं। इस प्रकार कुल 3996 प्रकरणों में 1 करोड़ 58 लाख 15 हजार 200 रूपए की राशि आपदा राहत कोष से सरकार द्वारा स्वीकृत की गई है। दूसरी ओर बाढ़ से किसानों को हुए फसल नुकसान का सर्वे कार्य जिला प्रशासन ने अब तक शुरु नहीं कराया है, लिहाजा किसान फसल क्षति के मुआवजे से अब तक वंचित हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की मानें तो शासन के आदेश के बाद उन्होंन पटवारियों को निर्देशित कर फसल नुकसान का सर्वे शुरु करा दिया है, जिसकी रिपोर्ट आने में कुछ दिन लग सकते हैं। पटवारी से रिपोर्ट मिलने के बाद ही फसल क्षति की मुआवजा राशि तय हो पाएगी, साथ ही आंकलन के अनुसार राशि का वितरण किया जाएगा। अधिकारियों का यह तर्क अपने स्तर पर सही हो सकता है, लेकिन जिनकी फसल प्रभावित हुई है, उन्हें अब सिर्फ प्रशासन पर ही उम्मीद है। बहरहाल पटवारी रिपोर्ट आने में अभी समय लग सकता है, तब तक किसानों को मुआवजा के लिए बाट जोहना पड़ेगा।

6 उद्योगों पर डेढ़ करोड़ जलकर बकाया

0 4 करोड़ का पानी लेकर जमा कराया सिर्फ ढ़ाई करोड़

जांजगीर-चांपा जिले में संचालित 6 नामी औद्योगिक इकाईयों ने अप्रैल 2010 से मार्च 2011 तक की अवधि का डेढ़ करोड़ रुपए जलकर शासन के खाते में जमा नहीं कराया है। इसके बावजूद संबंधित इकाईयों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे कई सवाल उठने लगे हैं।
जिले में संचालित 6 औद्योगिक संस्थानों को राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग ने विभिन्न स्रोतों से संयंत्र परिचालन के लिए 20.52 मिलीयन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष पानी लेने की अनुमति दी है। इनमें प्रकाश इण्डस्ट्रीज चांपा ने 8.40, मध्य भारत पेपर लिमिटेड चांपा ने 2.16, लाफार्ज इंडिया लिमिटेड आरसमेटा ने 0.60, आरसमेटा केप्टिव पॉवर लिमिटेड नेे 2.10, लहरी पॉवर प्लांट मड़वा ने 0.26, छ.ग. स्टील एवं पॉवर अमझर ने 7.0, मिलीयन क्यूबिक मीटर पानी लेने का करार सरकार से किया है। उपरोक्त 20.52 मिलीयन क्यूबिक मीटर पानी के एवज में इन औद्योगिक संस्थानों से जल संसाधन विभाग को अप्रेल 2010 से मार्च 2011 तक कुल 3 करोड़ 91 लाख 59 हजार रुपए टैक्समिलना था, लेकिन जल संसाधन विभाग के अनुसार मार्च 2011 तक इन औद्योगिक संस्थानों द्वारा कुल 2 करोड़ 39 लाख 75 हजार 500 रुपए ही जलकर जमा कराया गया है, जबकि शेष राशि 1 करोड़ 51 लाख 83 हजार 500 रुपए जमा कराने से साफ तौर पर इंकार कर दिया गया है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार के तहत् सिंचाई विभाग से मिली जानकारी से हुआ है। विभाग से मिले दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि औद्योगिक इकाईयां नदियों से पानी लेने में आगे है, लेकिन जलकर पटाने के मामले में कंपनी प्रबंधन गंभीर नहीं हैं। अब सवाल यह है कि आखिर किस वजह से इन उद्योगों के प्रबंधकों द्वारा जलकर की राशि जमा कराने में आनाकानी की जा रही है। साथ ही किन नियमों तथा प्रावधानों के अंतर्गत औद्योगिक संस्थानों ने 1 करोड़ 51 लाख 83 हजार 500 रुपए जलकर जमा नहीं कराया है। विभाग द्वारा दी गई जानकारी से यह भी स्पष्ट होता है कि इन सभी 6 औद्योगिक संस्थानों में से किसी एक ने भी 12 माह के दौरान अनुबंधित जल की पूरी मात्रा का उपयोग नहीं किया है। साथ ही सभी औद्योगिक संस्थानों के बिल में दर्शाया गया है कि उन्होंने अनुबंधित मात्रा से कमपानी का उपयोग किया है। वहीं शर्तों के अनुसार उनसे लगभग 90 प्रतिशत पानी का शुल्क लिया गया। यही नहीं कुछ औद्योगिक संस्थानों द्वारा 6-6 महीने बाद पानी का शुल्क पटाया गया है।

25 फीसदी ब्याज का प्रावधान
शासन के अनुबंध के अनुसार पानी का शुल्क 3 माह बाद जमा कराए जाने पर 24 प्रतिशत ब्याज तथा 1 प्रतिशत सर्विस टेक्स कुल मिलाकर 25 प्रतिशत राशि अतिरिक्त लिए जाने का प्रावधान है। अनुबंध में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अगर अनुबंध करने वाले औद्योगिक संस्थान द्वारा 6 महीने तक पानी का शुल्क नहीं जमा कराया गया, तब उसका अनुबंध निरस्त कर दिया जाएगा, लेकिन इन औद्योगिक इकाईयों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है, जो समझ से परे है।

अफसरों से प्रबंधन की मिलीभगत
सूचना के अधिकार के तहत् मिले दस्तावेज यह भी स्पष्ट करते हैं कि मध्य भारत पेपर्स लिमिटेड में पानी की मात्रा जानने का मीटर मई 2010 से अगस्त 2010 तक यानी 4 महीने बंद था, इसकी जानकारी सिंचाई विभाग को थी। वहीं औद्योगिक संस्थानों द्वारा 6-6 महीने बाद भी पानी का शुल्क न पटाए जाने पर न तो उनका अनुबंध निरस्त किया गया और ना ही उनसे पेनाल्टी की राशि वसूल की गई। इससे ऐसा लगता है कि औद्योगिक संस्थानों से मिलीभगत कर सिंचाई विभाग के अफसर शासन को लाखों रुपए के राजस्व की हानि पहुंचा रहे हैं।

टेम्पल सिटी में शराब की अवैध बिक्री

0 आबकारी विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई

उच्च न्यायालय के आदेश पर धार्मिक नगरी शिवरीनारायण में शासन द्वारा शराब की बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया गया है और बकायदा इसकी निगरानी के लिए कार्यालय खोलकर पहरेदार नियुक्त किया गया है, बावजूद इसके शराब माफिया खुलेआम होटल, ढाबों एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर शराब की अवैध बिक्री कर रहे हैं।
जांजगीर-चांपा जिले के नगर पंचायत शिवरीनारायण में कई मंदिर स्थित हैं, जिसके कारण लोगों की आस्था यहां से जुड़ी हुई है। इसी के चलते कुछ वर्ष पहले शिवरीनारायण को शासन ने टेम्पल सिटी का दर्जा दिया है। वहीं उच्च न्यायालय द्वारा इस नगर में शराब बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया गया है। शासन के आदेश के तहत् इस नगर में एक भी लायसेंसी शराब दुकान नहीं है, फिर भी यहां देसी और विदेशी शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। शराब माफिया नगर के होटल, ढ़ाबों और कई दुकानों से लोगों को शराब बेंच रहे हैं। इससे नगर का माहौल खराब होने के साथ ही उच्च न्यायालय के आदेश का खुला उल्लंघन हो रहा है। साथ ही शासन को लाखों के राजस्व की हानि हो रही है। नगर में शराब की अवैध बिक्री का नागरिक लंबे समय से विरोध कर रहे हैं। जब कभी भी नगर के लोगों एवं समाज सेवी संस्थाओ द्वारा शराब की अवैध बिक्री के विरूद्ध कार्रवाई की मांग की जाती है, तब आबकारी विभाग महज एक-दो पाव की जब्ती बनाकर खानापूर्ति करता है, जबकि उसके बाद शराब की अवैध बिक्री फिर शुरु हो जाती है। उल्लेखनीय है कि बीते 15 अगस्त को भी इस धार्मिक नगरी में शराब बिक्री धड़ल्ले से जारी रही, जिसे रोकने वाला कोई नहीं था। मीडिया द्वारा इस मामले को उठाए जाने पर आबकारी विभाग के अफसर तिलमिला गए और खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए17 अगस्त को नगर एक दो स्थानो पर एक-दो प्रकरण बनाकर फिर खानापूर्ति कर दी। बताया जाता है कि शराब माफियाओं द्वारा लायसेंसी दुकानों के लिए राजस्व के रूप में खर्च की जाने वाली राशि अब आबकारी विभाग व स्थानीय प्रशासन को चढ़ावे के रूप में दी जा रही है, जिसके कारण शासन की नई आबकारी नीति और कानून का असर टेम्पल सिटी में नहीं दिख रहा है।

महावीर कोलवाशरी का भारी विरोध

0 कलेक्टोरेट पहुंचे भिलाई के सैकड़ों ग्रामीण
0 शिकायत दूर नहीं होने पर दी आंदोलन की चेतावनी


सामुदायिक विकास कार्य नहीं कराए जाने से आक्रोशित भिलाई के ग्रामीणों ने महावीर कोल वाशरी प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ग्रामीणों ने प्रबंधन पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए कलेक्टोरेट पहुंचकर शिकायत की है।
जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखंड के ग्राम पंचायत भिलाई में महावीर कोल वाशरी संचालित है, जहां से कई उद्योगों को कोयले की सप्लाई की जाती है। कोलवाशरी शुरु करते समय प्रबंधन ने क्षेत्र में आवश्यक सामुदायिक विकास कार्य कराने का आश्वासन दिया था, जिसके आधार पर ग्रामीण कोलवाशरी खुलवाने के लिए राजी हुए थे। मगर कोलवाशरी प्रबंधन अब अपने आश्वासन से मुकर गया है। इसकी शिकायत लेकर सैकड़ों ग्रामीण कलेक्टोरेट पहुंचे थे, जिन्होंने कलेक्टर से शिकायत करते हुए महावीर कोलवाशरी के खिलाफ मनमानी का आरोप लगाया। आदर्श मजदूर कल्याण संघ के अध्यक्ष बजरंग यादव ने बताया कि शासन से तय नियमों के तहत् उद्योग प्रबंधकों को सामुदायिक विकास कार्य की राशि प्रभावित गांव में खर्च की जानी चाहिए, लेकिन महावीर कोलवाशरी प्रबंधन द्वारा सामुदायिक विकास कार्य की राशि मनमाने तौर पर खर्च की जा रही है। इससे आक्रोशित होकर ग्रामीणों ने बीते 27 अगस्त को चक्काजाम करने का निर्णय लिया था, तब बलौदा के तहसीलदार ने दोनों पक्षों को समझौता कराया। समझौते के मुताबिक कोलवाशरी प्रबंधन को गांव में विकास कार्य कराए जाने थे, बावजूद इसके सामुदायिक विकास कार्य नहीं कराए जा रहे हैं। इसके अलावा प्रभावित गांव में विकास कार्य कराने के बजाय प्रबंधक द्वारा जांजगीर व चांपा में सामुदायिक विकास की राशि खर्च किए जाने की बातें कही जा रही है। शिकायत करने कलेक्टोरेट पहुंचे कमलेश जांगड़े, मनमोहन राम, वेदप्रकाश, अश्वनी कुमार सहित कई ग्रामीणों ने कहा कि कोलवाशरी प्रबंधन यदि उनकी बातें नहीं मानता है और प्रशासन मामले में जल्द कार्रवाई नहीं करती है, तो वे उग्र आंदोलन करेंगे।

...तो होता रहेगा हुक्का-पानी बंद !

0 कानून में नहीं है सजा का प्रावधान
0 दबंगों के सामने पुलिस बनी बेबस


भारतीय कानून में हत्या, चोरी अन्य गंभीर अपराध करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन हुक्का-पानी बंद करने वालों के खिलाफ कानून में कोई सजा तय नहीं है। इसी का फायदा उठाते हुए जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत् कमजोर परिवारों का दबंग लोग लगातार हुक्का-पानी बंद करा रहे हैं। लोगों से ठुकराए हुए ग्रामीणों को अपने गांव में ही पराया बनकर रहना पड़ रहा है, जबकि पुलिस कानून की दुहाई देकर दबंगों के आगे बेबस बनी हुई है।
पिछले 6 माह के भीतर दबंग लोगों द्वारा छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले में आधा दर्जन से अधिक बेबस परिवारों का हुक्का-पानी बंद कराए जाने का मामला सामने आया है। छह माह पहले पंचायत की बैठक में नहीं पहुंच पाने के कारण जैजैपुर विकासखंड के ग्राम करौवाडीह की महिला सरपंच श्रीमती कविता मनहर व उसके परिवार का उपसरपंच ने ही हुक्का-पानी बंद करा दिया। उपसरपंच के इस निर्णय के बाद गांव के लोगों ने सरपंच और उसके परिवार से बातचीत बंद कर दी। इसकी शिकायत सरपंच व उसके परिजनों ने जैजैपुर थाने में दर्ज कराई, जिस पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इससे कुछ पहले भी उपसरपंच व उसके रिश्तेदारों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर पंचायतकर्मी शिवकुमार शिवे व रोजगार सहायक पानूराम का हुक्का पानी बंद कराया था, जिनसे 25-25 हजार अर्थदंड लेने के बाद उपसरपंच व ग्रामीणों का व्यवहार सामान्य हुआ। इस मामले के एक माह बाद ग्राम बिर्रा में दबंगों ने सरपंच, जनपद सदस्य व कुछ पंचों का हुक्का पानी बंद करा दिया, जिस पर पीडि़तों की ओर से शिकायत पुलिस तक पहुंची, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसी तरह जैजैपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत मल्दा निवासी फूलबाई (50 साल) बेबा रघुराम कश्यप व उसके दामाद लखनलाल का सरपंच पति माधवराम कश्यप ने मामूली विवाद को लेकर हुक्का-पानी बंद करा दिया है। इसी तरह का मामला हाल ही में ग्राम पंचायत कापन में सामने आया है। अकलतरा विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत कापन में सरपंच अगहन लाल ने बिसाहूराम कश्यप व उसके परिवार का हुक्का पानी बंद कराया है। यहां तो गांव में कोटवार से मुनादी तक कराई गई है कि उस परिवार से कोई बात नही करेगा। यहां तक कि नाई और धोबी से भी कह दिया गया है कि वे उस परिवार को किसी तरह की सेवा न दे, वरना दण्ड के भागी होंगे। खास बात यह है कि इन सभी मामलों में प्रताडि़त परिवारों ने पुलिस थाने व एसपी कार्यालय जाकर शिकायत दर्ज कराते हुए न्याय की गुहार लगाई है, लेकिन कानून में दंड का प्रावधान नहीं होने की बात कहते हुए पुलिस ने हर बार पीडि़तों की मदद करने से हाथ खींच लिया है। एक तरह से हुक्का-पानी बंद के इन सभी मामलों में पीडि़तों को पुलिस का सहयोग बिल्कुल नहीं मिला है। हुक्का-पानी बंद होने के बाद पीडि़त परिवार न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं। वहीं दबंग ग्रामीण अपनी मनमानी पर उतर आए है और वे अपनी बातें मनवाने के लिए इसे एक बेहतर अस्त्र मान रहे हैं। अब तक देखा जाए तो किसी योजना में गड़बड़ी व पेंशन आदि नहीं मिलने को लेकर दबंगों की शिकायत करना कई ग्रामीणों को महंगा ही पड़ा है। जबकि पुलिस हर बार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही है, जिसका फायदा उठाने में दबंग पीछे नहीं हैं। बहरहाल दबंग व्यक्ति जब चाहे किसी का हुक्का-पानी बंद करा सकता है, क्योंकि इस तरह के अपराध के लिए कानून में सजा का कोई प्रावधान नहीं होने की बात कहते हुए पुलिस अपना पल्ला झाड़ लेती है।

सजा का प्रावधान नहीं
हुक्का-पानी बंद करने वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता में सजा का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे मामलों में पुलिस किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकती। सिर्फ दोनों पक्षों को समझाइश देकर मामला शांत कराया जा सकता है।
-एसआर भगत, एडिशनल एसपी, जांजगीर