गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

किराना दुकान की तरह खुले प्राइवेट स्कूल

"वह दिन लद गए, जब शिक्षादान पुण्य माना जाता था और निस्वार्थ भाव से बच्चों को स्कूलों में शिक्षा दी जाती थी। बदलते समय में अब शिक्षा एक व्यापार बनकर रह गया है और इसके कारोबारी परचून की दुकान की तरह जिले भर में गली-गली में प्राइवेट स्कूल खोलकर हर साल लाखों कमा रहे हैं। इन स्कूलों की फीस पटाने में जहां अभिभावकों की कमर टूट रही है, वहीं फर्जी तरीके से मान्यता ली गई कई स्कूलों में बच्चों को निर्धारित सुविधाएं भी मिल पाना मुश्किल है।"

शिक्षा विभाग से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक जांजगीर-चांपा जिले में 213 प्राइवेट स्कूल संचालित है। वैसे तो स्कूल खोलने के लिए सरकार ने ठीकठाक मापदंड तय रखे हैं, जिसमें अच्छा भवन, फर्नीचर के साथ व्यवस्थित क्लास रूम, पुस्तकालय, पर्याप्त पुस्तक, अलग-अलग विषयों के योग्य शिक्षक, शुद्ध पेयजल, छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग प्रसाधन, खेल मैदान, प्रयोग शाला आदि होना अनिवार्य है। मगर इन मापदंडों को तय करने वालों की लापरवाही कहें, या फिर मातहत अधिकारियों की अनदेखी और मिलीभगत, जिससे जिले के कई ऐसे स्कूलों को मान्यता मिल गई है, जहां सरकारी मापदंडों में से बमुश्किल एकाध का ही पालन हो पाता है। जबकि मान्यता के लिए स्कूल संचालकों को सभी मापदंडों को पूर्णतः पालन करते हुए आवेदन करना पड़ता है। साथ ही भौतिक सत्यापन के अलावा शासन को आश्वस्त करना पड़ता है कि स्कूल खोलने के लिए आवेदक के पास सभी सुविधाएं मौजूद है। यही नहीं मान्यता देने के पहले संबंधित स्कूलों के निरीक्षण का प्रावधान भी है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों को नियम-कायदों से कोई सरोकार नहीं है। वे जानबूझकर अपनी आंखे मूंदकर सत्यापन की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। क्योकि जिले भर में संचालित ऐसे ढ़ेरों स्कूल खुद इसके गवाह है, जो फर्जीवाड़े को सत्यापित करते हैं। ऐसे स्कूलों के पास न तो निर्धारित मापदंड के अनुसार भवन है और न ही अन्य जरूरी सुविधाएं। जिले में संचालित इन 213 प्राइवेट स्कूलों में लगभग 2 हजार से ज्यादा शिक्षक व शिक्षकाएं अध्यापन करा रहे है, जिसमें से बामुश्किल 500 शिक्षक ही निर्धारित योग्यता रखते हैं।

ज्यादातर शिक्षक-शिक्षकाएं बारहवीं या स्नातक उत्तीर्ण हैं, जिन्हें कम वेतन पर रखकर स्कूल संचालक बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि प्राइवेट स्कूलों में अध्यापन कराने वाले ज्यादातर शिक्षक एनसीटीआई और एससीआरटी के मानक को पूरा नहीं करते हैं। दूसरी ओर जिले में संचालित मान्यता प्राप्त स्कूलों के अलावा कुछ ऐसे स्कूल भी चल रहे है, जिसका शिक्षा विभाग के पास कोई रिकार्ड नहीं है। ऐसे स्कूलों के संचालक अपनी संस्थान को दूसरे राज्यों के बोर्ड से संबद्ध बताकर लोगों से ठगी करने नहीं चूक रहे हैं। प्राइवेट स्कूल संचालकों को केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए शिक्षा के अधिकार कानून की भी परवाह नहीं है। यही वजह है कि चालू शैक्षणिक सत्र में जिले के किसी भी स्कूल में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले एक भी छात्र को प्रवेश नहीं दिया गया है। वहीं माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा प्राइवेट स्कूलों को मान्यता देने के बाद भी हर तीन वर्ष में एक बार उस शैक्षणिक संस्था का निरीक्षण करने का प्रावधान है, जबकि जिले में संचालित शैक्षणिक संस्थाओं का लंबे समय से निरीक्षण भी नहीं हुआ है।

स्कूल के लिए निर्धारित मापदंड
शिक्षा विभाग द्वारा प्राइवेट स्कूलों के संचालन के लिए मापदंड तय किए गए हैं। जिसके अनुसार हाईस्कूल के लिए न्यूनतम 2 हजार वर्गफीट व हायर सेकेण्डरी के लिए 26 सौ वर्ग फीट क्षेत्रफल में निर्मित शाला भवन, शुद्ध पेयजल, पुस्तकालय में पर्याप्त पुस्तकें और फर्नीचर, सभी विषयों की अलग-अलग प्रयोगशाला, प्राइवेट संस्थानों में कम से कम दो खेलों के ग्राउण्ड की व्यवस्था, शहरी क्षेत्रों में इंडोर गेम के लिए व्यवस्था, छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, सभी संकायों के लिए योग्य टीचिंग स्टाफ, फर्नीचर की व्यवस्था तथा विघुत की व्यवस्था अनिवार्य रूप में होनी चाहिए।

भौतिक सत्यापन रहा बेनतीजा
दो वर्ष पूर्व जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्यकार्यपालन अधिकारी ओमप्रकाश चौधरी ने जिले में चल रहे प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसने के लिए भौतिक सत्यापन कराया था। सीईओ ने स्कूलों की जांच के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों की 26 टीमें गठित की थी, जिनके द्वारा भौतिक सत्यापन के तहत् स्कूल के एक-एक कमरे की लंबाई-चौड़ाई नापी गई थी। इससे प्राइवेट स्कूल संचालकों के होश उड़ गए थे। सत्यापन की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद नियमों के विपरित संचालित हो रहे स्कूलों पर कार्रवाई हो पाती, इससे पहले सीईओ चौधरी का जिले से तबादला हो गया। इसके बाद से भौतिक सत्यापन की फाईल ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।

1 टिप्पणी:

Rajeev Kumar ने कहा…

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