शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

मीडियाकर्मियों ने पूछा-सर 'टेंडर कब निकला, तो मत्स्य अफसर बोले तुम्हे 60 का पहाड़ा याद है क्या?

महानदी में निर्माणाधीन पांच बैराजों में डाली गई 51 लाख की मछली बीज को लेकर मत्स्य विभाग के जांजगीर-चांपा के सहायक संचालक गोलमोल जवाब देकर बचने की कोशिश कर रहे हैं। मत्स्य विभाग के दफ्तर पहुंचे मीडियाकर्मियों ने जब उनसे पूछा कि सर, बैराजों में मछली बीज डालने के लिए टेंडर कब निकला था और बैराजों में कितने की बीज डाली गई है, इस सवाल का सीधे जवाब देने के बजाय सहायक संचालक असलम खान बेतुका बात करने लगे। उन्होंने मीडियाकर्मियों से ही सवाल दागा कि तुम्हे 60 का पहाड़ा याद है क्या? यदि याद है तो सुनाओ। वे बोले, जिस तरह तुम्हे 60 का पहाड़ा याद नहीं, ठीक उसी तरह मुझे भी बैराजों में मछली बीज डालने के लिए टेण्डर कब निकला, यह याद नहीं है। कोई भी मामला मुंह जुबानी याद नहीं रहता। इसके लिए फाइल देखनी पड़ती है, जिसके लिए मेरे पास अभी समय नहीं है। जब फुर्सत मिलेगी, तब मैं जानकारी दूंगा। दरअसल, महानदी पर निर्मित शिवरीनारायण, बसंतपुर, कलमा, साराडीह और मिरौनी बैराज में मछली बीज डालने के लिए राज्य शासन ने बीते फरवरी-मार्च में 51 लाख रुपए आवंटित किया था। इतनी राशि से संबंधित बैराजों में मछली बीज डलवाना था। शासन के निर्देशानुसार, ये काम बकायदा टेण्डर जारी कर पूरी पारदर्शिता के साथ कराया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सहायक संचालक मत्स्य असलम खान ने अपने हिसाब से प्रक्रिया पूरी कर ली और अलग-अलग वाहनों में मछली बीज मंगवाकर भौतिक सत्यापन कराए बगैर सीधे बैराजों में डलवा दिया। इसके कुछ दिन बाद ही बीज प्रदातों को भुगतान भी कर दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि मछली बीज किन-किन बैराजों में कितनी मात्रा में डाला गया है और इसके लिए टेण्डर कब निकाला गया था, इस संबंध में विभाग के जिम्मेदार अधिकारी यानी सहायक संचालक खान गोलमोल जवाब दे रहे हैं। यहां बताना लाजिमी होगा कि मछली बीज डालने के नाम पर इस तरह की गड़बड़ी का मामला जिले में पहले भी कई बार सामने आ चुका है, लेकिन इस विभाग की गतिविधि पर शासन-प्रशासन ने विशेष ध्यान नहीं दिया है। यही वजह है कि मत्स्य विभाग के अफसर शासन की विभिन्न योजनाओं में पलीता लगाने कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अफसर बोल रहे तारीख याद नहीं पड़ताल में जो जानकारी छनकर सामने आई है, उसके मुताबिक, मत्स्य विभाग ने कही कोई टेण्डर नहीं निकाला है। जबकि, मत्स्य विभाग के सहायक संचालक असलम खान का दावा है कि टेण्डर राज्य स्तर से निकाला गया है, लेकिन कब निकाला गया है और किन-किन बैराजों में मछली बीज डाला गया है, यह उन्हें याद नहीं है। इसके लिए उन्हें फाइल देखनी पड़ेगी। ऐसे में यहां सवाल उठना लाजिमी है कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी की जानकारी के बिना आखिरकार बीज प्रदाताओं को बीज का भुगतान कैसे हो सकता है। इसलिए डालते हैं बैराजों में बीज जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिस पानी में मछली नहीं होता, उस पानी की जैविक स्थिति सामान्य नहीं रहती है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को जीवन सूचक (बायोइंडीकेटर) माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। जल प्रदूषण को संतुलित रखने के लिए मछली की विशेष उपयोगिता है।

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