शनिवार, 21 मई 2011

अंधविश्वास से कैसे मुक्त होगा समाज?

आधुनिक युग में इंसान आज धरातल से ऊपर उठकर ग्रह-नक्षत्र तक जरूर पहुंच गया है, लेकिन अंधविश्वास की जड़े आज भी समाज से नहीं उखड़ी है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जादू-टोना के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किए जाने, आंख फोड़ने, गांव से बाहर निकाल देने सहित कई तरह की घटनाएं आज भी बदस्तूर जारी है। दिलचस्प बात यह है कि अंधविश्वास को दूर करने के लिए पुलिस व सरकार वर्षो से प्रयासरत है, लेकिन उनके प्रयासों का अब तक सार्थक हल नहीं निकल पाया है।

सरकार ने जादू-टोना के नाम पर प्रताड़ित होने वाले लोगों को न्याय दिलाने के लिए टोनही प्रताड़ना अधिनियम 2005 लागू किया है, मगर अधिनियम के कायदे और कानून महज किताबों तक ही सीमित हैं। कानून लागू होने के 6 साल बाद भी लोग उसे मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हो रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण शुक्रवार को बलौदाबाजार इलाके के सौरा गांव में उस समय सामने आया, जब कुछ लोगों ने टोनही का इल्जाम लगाते हुए एक महिला और उसके पति की आंखें फोड़ डालीं। दर्जन भर से ज्यादा हमलावर शुक्रवार को दोपहर मंशाराम बंजारे (50) के घर घुसे। उस वक्त मंशाराम अपनी पत्नी श्यामकुंवर (45) के साथ आराम कर रहा था। अचानक हमलावरों ने दंपति को दबोचकर उनकी आंखों में कैंची घुसा दी और लहूलुहान छोड़कर भाग निकले। इस घटना के पीछे अंधविश्वास ही एक बड़े कारण के रूप में सामने आया, जिसकी वजह से आज एक दंपति को अपनी आंखे गंवानी पड़ गई। इसी तरह बीते 9 जनवरी को जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत सिवनी में भी टोना-जादू के चक्कर में 25 महिलाओं पर शामत आ पड़ी थी। यहां रहने वाले सीताराम राठौर ने उपचार के बाद भी पुत्री की तबीयत ठीक नहीं होने पर बैगा का सहारा लिया। उसने गांव के बैगा भगवानदीन राठौर को अपने घर बुलवाकर झाड़-फूंक कराई, तब बैगा ने पास-पड़ोस की किसी महिला पर जादू-टोना का संदेह जताया। साथ ही उसकी पहचान के लिए सीताराम ने घटना के दिन सुबह आसपास की महिलाओं को अपने घर बुला लिया। टोनही परीक्षण के लिए कथित बैगा ने पीसी हुई जड़ी-बूटी पीने के लिए सभी महिलाओं पर दबाव बनाया, तब कुछ महिलाओं ने इंकार भी किया। मगर महिलाओं ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए बैगा द्वारा दी गई दवाई को पी लिया। इसके कुछ देर बाद ही महिलाएं एक-एक कर जमीन पर बेसुध होकर गिरने लगी। घटना की खबर सुनकर ग्रामीण सैकड़ों की संख्या में सीताराम के घर पहुंचे और बेसुध लक्ष्मीन बरेठ, लता देवांगन, मालती देवांगन, पार्वती देवांगन, पंचकुंवर बाई, रामबाई श्रीवास, मानकीबाई, गायत्रीबाई, मंगलीबाई, पूर्णिमा, मीराबाई, श्यामबाई, रूक्मिणी, कौशल्या देवांगन सहित 25 महिलाओं को चांपा के बीडीएम अस्पताल पहुंचाया। जड़ी-बूटी पीने वाली एक वृद्धा को गंभीर अवस्था में सिम्स बिलासपुर रेफर करना पड़ा, जिसकी कुछ दिनों बाद मौत हो गई। उस वृद्धा के अलावा दवा पीकर बीमार हुई सभी महिलाएं आज पूरी तरह सकुशल है। वहीं घटना को अंजाम देने वाले 6 आरोपी जेल में हैं।

वर्तमान में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में टोनही प्रताड़ना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। टोना-जादू के नाम पर प्रदेश के गांवों में ही नहीं, शहरों में भी लोगों को प्रताड़ित किए जाने की घटनाएं कम नहीं है। लोगों के मन से अंधविश्वास दूर करने में पुलिस भी कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। यह बात अलग है कि अधिनियम लागू होने के शुरूआती दौर में पुलिस विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों ने इसके प्रचार प्रसार के बहाने अपनी जेबें जरूर भर लिए। यही नहीं समाज से अंधविश्वास की जड़ मिटाने के नाम पर समाजिक संगठनों ने भी खूब कमाई की। सरकार तक झूठे रिपोर्ट भेजकर संगठनों ने अपना प्रोजेक्ट पूरा कर लिया, जिनके कार्यो की प्रशासन ने कभी आडिट भी नहीं कराई। मसलन ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सामाजिक संगठनों से क्या फायदा हुआ, यह सबको अच्छी तरह से पता है। बहरहाल, अंधविश्वास को दूर करने के लिए सरकार ने भले ही टोनही प्रताड़ना अधिनियम लागू कर दिया है, लेकिन महज कानून की दुहाई देकर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के मन से अंधविश्वास को कतई नहीं मिटाया जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि अंधविश्वास और टोना-जादू के नाम पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं आखिरकार कब तक प्रताड़ित होती रहेंगी?

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