बुधवार, 21 सितंबर 2011

6 उद्योगों पर डेढ़ करोड़ जलकर बकाया

0 4 करोड़ का पानी लेकर जमा कराया सिर्फ ढ़ाई करोड़

जांजगीर-चांपा जिले में संचालित 6 नामी औद्योगिक इकाईयों ने अप्रैल 2010 से मार्च 2011 तक की अवधि का डेढ़ करोड़ रुपए जलकर शासन के खाते में जमा नहीं कराया है। इसके बावजूद संबंधित इकाईयों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे कई सवाल उठने लगे हैं।
जिले में संचालित 6 औद्योगिक संस्थानों को राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग ने विभिन्न स्रोतों से संयंत्र परिचालन के लिए 20.52 मिलीयन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष पानी लेने की अनुमति दी है। इनमें प्रकाश इण्डस्ट्रीज चांपा ने 8.40, मध्य भारत पेपर लिमिटेड चांपा ने 2.16, लाफार्ज इंडिया लिमिटेड आरसमेटा ने 0.60, आरसमेटा केप्टिव पॉवर लिमिटेड नेे 2.10, लहरी पॉवर प्लांट मड़वा ने 0.26, छ.ग. स्टील एवं पॉवर अमझर ने 7.0, मिलीयन क्यूबिक मीटर पानी लेने का करार सरकार से किया है। उपरोक्त 20.52 मिलीयन क्यूबिक मीटर पानी के एवज में इन औद्योगिक संस्थानों से जल संसाधन विभाग को अप्रेल 2010 से मार्च 2011 तक कुल 3 करोड़ 91 लाख 59 हजार रुपए टैक्समिलना था, लेकिन जल संसाधन विभाग के अनुसार मार्च 2011 तक इन औद्योगिक संस्थानों द्वारा कुल 2 करोड़ 39 लाख 75 हजार 500 रुपए ही जलकर जमा कराया गया है, जबकि शेष राशि 1 करोड़ 51 लाख 83 हजार 500 रुपए जमा कराने से साफ तौर पर इंकार कर दिया गया है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार के तहत् सिंचाई विभाग से मिली जानकारी से हुआ है। विभाग से मिले दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि औद्योगिक इकाईयां नदियों से पानी लेने में आगे है, लेकिन जलकर पटाने के मामले में कंपनी प्रबंधन गंभीर नहीं हैं। अब सवाल यह है कि आखिर किस वजह से इन उद्योगों के प्रबंधकों द्वारा जलकर की राशि जमा कराने में आनाकानी की जा रही है। साथ ही किन नियमों तथा प्रावधानों के अंतर्गत औद्योगिक संस्थानों ने 1 करोड़ 51 लाख 83 हजार 500 रुपए जलकर जमा नहीं कराया है। विभाग द्वारा दी गई जानकारी से यह भी स्पष्ट होता है कि इन सभी 6 औद्योगिक संस्थानों में से किसी एक ने भी 12 माह के दौरान अनुबंधित जल की पूरी मात्रा का उपयोग नहीं किया है। साथ ही सभी औद्योगिक संस्थानों के बिल में दर्शाया गया है कि उन्होंने अनुबंधित मात्रा से कमपानी का उपयोग किया है। वहीं शर्तों के अनुसार उनसे लगभग 90 प्रतिशत पानी का शुल्क लिया गया। यही नहीं कुछ औद्योगिक संस्थानों द्वारा 6-6 महीने बाद पानी का शुल्क पटाया गया है।

25 फीसदी ब्याज का प्रावधान
शासन के अनुबंध के अनुसार पानी का शुल्क 3 माह बाद जमा कराए जाने पर 24 प्रतिशत ब्याज तथा 1 प्रतिशत सर्विस टेक्स कुल मिलाकर 25 प्रतिशत राशि अतिरिक्त लिए जाने का प्रावधान है। अनुबंध में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अगर अनुबंध करने वाले औद्योगिक संस्थान द्वारा 6 महीने तक पानी का शुल्क नहीं जमा कराया गया, तब उसका अनुबंध निरस्त कर दिया जाएगा, लेकिन इन औद्योगिक इकाईयों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है, जो समझ से परे है।

अफसरों से प्रबंधन की मिलीभगत
सूचना के अधिकार के तहत् मिले दस्तावेज यह भी स्पष्ट करते हैं कि मध्य भारत पेपर्स लिमिटेड में पानी की मात्रा जानने का मीटर मई 2010 से अगस्त 2010 तक यानी 4 महीने बंद था, इसकी जानकारी सिंचाई विभाग को थी। वहीं औद्योगिक संस्थानों द्वारा 6-6 महीने बाद भी पानी का शुल्क न पटाए जाने पर न तो उनका अनुबंध निरस्त किया गया और ना ही उनसे पेनाल्टी की राशि वसूल की गई। इससे ऐसा लगता है कि औद्योगिक संस्थानों से मिलीभगत कर सिंचाई विभाग के अफसर शासन को लाखों रुपए के राजस्व की हानि पहुंचा रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: